(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय मूर्ति और चित्रकला: गुप्तोत्तर कालीन मूर्तिकला और स्थापत्य (Sculpture and Painting: Post Gupta Sculpture and Architecture)
परिचय
मूर्तिकला के बारे में अब तक हमने अपने कई एपिसोड्स में मूर्तिकला के महत्त्व को समझने का प्रयास किया है और यह जाना है कि मूर्तिकला कला विभिन्न कालों में निरन्तर विकसित होती रही है एवं भक्त और भगवान के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने का माध्यम बनती रही है इसी परिप्रेक्ष्य में मूर्तिकला कला के अपने इस अंक में हम आज कुछ अन्य कलाओं के बारे में जानने का प्रयास करेंगे-
मृणमूर्ति कला
गुप्तकाल में मृणमूर्ति कला का भी सम्यक् विकास हुआ। इस काल के कुम्भकारों ने पकी हुई मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनायीं। इनमें चिकनाहट और सुडौलता पाई जाती है। विष्णु, कार्तिकेय, दुर्गा, गंगा, यमुना आदि देवी-देवताओं की बहुसंख्यक मृणमूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। धार्मिक मूर्तियों के साथ-साथ अनेक लौकिक मूर्तियाँ भी मिलती हैं। गुप्त काल में मथुरा मृण्मूर्ति निर्माण का एक बड़ा केन्द्र था।
इस काल का एक अपराजेय मृण्फलक यानी बेर सेत-माहेत से मिला है, जिसमें सिंहासीन दुर्गा की मूर्ति है। पहाड़पुर से कृष्ण की लीलाओं से संबंधित कई मूर्तियाँ मिलती हैं। अहिच्छत्र की मूर्तियों में गंगा-यमुना की मूर्तियाँ तथा पार्वती के सुन्दर सिर का उल्लेख किया जा सकता है। भीतरगाँव मंदिर से शेषशायी विष्णु का एक सुन्दर मृण्फलक मिला है। भीटा के उत्खनन के दौरान बहुसंख्यक मृण्मूर्तियाँ प्रकाश में आईं, जिनके विषय में मार्शल महोदय ने टिप्पणी की कि कला एवं सौंदर्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही साथ इनसे गुप्तकालीन वेषभूषा, फैशन आदि के विषय में भी अच्छी जानकारी मिल जाती है।
गुप्तोत्तर कालीन मूर्तिकला
गुप्तकाल के पश्चात् मूर्तिकला की प्रगति में कुछ बाधा अवश्य पहुँची, इसके बावजूद इस काल में अनेकानेक मूर्तियों का निर्माण हुआ। अजन्ता, एलोरा, एलीफेन्टा, बाघ, सारनाथ, वैशाली आदि इस काल के प्रमुख मूर्तिकला केन्द्र थे। इस काल में बौद्ध, जैन, ब्राह्यण धर्म से संबंधित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनायीं गयीं।
इस काल की मूर्तिकला की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- इस काल की मूर्तियाँ सजीव एवं सुन्दर हैं। इनमें भद्देपन की कहीं कोई गुंजाइश नहीं दिखायी देती। मूर्तियाँ भावपूर्ण हैं।
- सारनाथ की मूर्तियों में गंभीरता, शांति आदि के भाव दिखायी देते हैं। इन मूर्तियों में सजावट के चिन्ह पाये जाते हैं।
- सारनाथ की मूर्तियों में स्वर्णीयता की छाप दर्शित होती है। अधिकतर मूर्तियाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं। इन मूर्तियों में बौद्ध धर्म के पतन के चिन्ह परिलक्षित होते हैं।
अगले अंक में मूर्तिकला से जुड़े कुछ अन्य रोचक जानकारियों को लेकर हम शीघ्र ही आपके समक्ष प्रस्तुत होंगे।